यहां... वहाँ... कहाँ ? - 1 S Bhagyam Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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यहां... वहाँ... कहाँ ? - 1

यहां... वहाँ... कहाँ ?

मूल लेखक राजेश कुमार

राजेश कुमार

इस उपन्यास के मूल तमिल लेखक राजेश कुमार है। आपने 50 वर्षों में डेढ़ हजार उपन्यास लिखे और 2000 कहानियां लिखी। आपकी उपन्यास और कहानियों के पाठकों की संख्या बहुत ज्यादा है। अभी आपका नाम गिनीज बुक के लिए गया हुआ है। चाहे आपके उपन्यासों हो या कहानियां दोनों ही एक बार शुरू कर दो खत्म किए बिना रखने की इच्छा नहीं होती उसमें एक उत्सुकता बनी रहती है कि आगे क्या होगा |

तमिलनाडु में इनकी कहानियों और उपन्यासों की बहुत ज्यादा मांग है |

इसीलिए मैंने भी इनकी कहानियों का और उपन्यास का अनुवाद करती हूं।

एस. भाग्यम शर्मा

 

यहां... वहाँ... कहाँ ?

इस कहानी में एक आदमी आत्महत्या कर लेता है। क्यों किया कैसे किया, कुछ भी पता नहीं चलता परंतु आत्महत्या करने के पहले वह एक पत्र लिखकर जाता है अतः पुलिस भी इसे आत्महत्या ही मानती है ।

विदेश से कुछ शोधकर्ता भारत आकर शोध करना चाहते हैं। परंतु वे अपनी आइडेंटिटी नहीं बताना चाहते। इसमें और आत्महत्या में कोई संबंध है क्या यह जानने के लिए आपको इस उपन्यास को पढ़ना पड़ेगा। जो बहुत ही इंटरेस्टिंग है।

एस . भाग्यम शर्मा

 

वहाँ....यहाँ ....कहाँ ....?

अध्याय 1

इतनी जल्दी सुबह-सुबह टेबल लैंप को जलाकर... यह सुंदर युवक कंप्यूटर में तमिल सॉफ्टवेयर की सहायता से एक पत्र टाइप कर रहा था।

'मुझे पैदा कर पाल-पोस के बड़ा किए अप्पा अम्मा....

आपके बेटे गोकुलम का आखिरी प्रणाम। यह पत्र आपको मिलेगा तब तक मैं जीवित नहीं रहूंगा। मेरे जाने को आप सहन नहीं कर सकते हो मुझे मालूम है। फिर भी मैं जिस परिस्थिति में हूं उसके लिए मरना ही एकमात्र उपाय है।

मैं आपका एकमात्र पुत्र हूं। आपने करोड़ों-करोड़ों जो कमा कर रखा है और उस संपदा का मैं अकेला वारिस हूं। बिना कोई समस्या के मैं जीवित रह सकता हूं। परंतु सिर्फ रुपए ही जीवन नहीं है ना! उसके अलावा भी और भी बातें हैं जो मेरे लिए बहुत महत्व रखते हैं। यही मेरा जीवन है ऐसा सोचकर हर एक क्षण मैंने जीना शुरु किया। वह जीवन मुझे हमेशा मिलेगा ऐसा मैंने सोचा। पर वह बेकार गया।

वह कौन सी बात है इस समय तक आपने अनुमान लगा लिया होगा। आपका अनुमान ठीक है। मैं एक लड़की को अपने प्राणों से ज्यादा चाहता हूं। वह भी मुझे प्रेम करती थी। दोनों ने सही समय पर अपने अपने घर में बात को बताएंगे ऐसा सोच रहे थे। परंतु इसके लिए उसके अप्पा ने कोई और दामाद को देखकर पक्का कर दिया।

मैंने उसके अप्पा से मिलकर हमारे प्रेम के बारे में कहने की सोची। मेरी प्रेमिका इसके लिए राजी नहीं हुई। 'अभी अप्पा को पता चले तो वे एक रूद्र तांडव ही करने लगेंगे। हमारे परिवार का अपमान होकर सड़क पर लोग हंसेंगे। ‘हां तो तुम मुझे भूल जाओ!' कहकर.... इस प्रेम के बारे में बाहर किसी को भी मालूम नहीं होना चाहिए ऐसा उसने मुझसे शपथ भी ले लिया।

मेरी प्रेमिका के बातों को मैं मना नहीं कर सका। तुम्हारे बारे में विवरण बाहर किसी को भी ना मालूम हो ऐसा मैं रहूंगा ऐसा मैंने शपथ कर उसे 'बाय' करके आ गया। उसके बाद मैंने उसे नहीं देखा। सेलफोन से भी मैंने बात करने की कोशिश नहीं की। वह दूसरा जीवन जीने के लिए तैयार हो गई। परंतु मैं ऐसे तैयार ना हो सका। मैं जब तक जीवित रहूंगा तब तक एक-एक क्षण उसी की याद में रहूंगा।

मैं अपने को भूलकर सोऊं तो भी सपने में आकर मुझे परेशान करती है। इस आफत को मैं सहन नहीं कर पा रहा हूं। इस दर्द के साथ मैं इस दुनिया में नहीं रहना चाहता।

आज उसकी शादी है। सुबह 9:00 बजे से लेकर 9:30 बजे तक मुहूर्त का समय है। उसके गले में मंगलसूत्र डल जाएगा उसके पहले मैंने इस दुनिया से जाने का इरादा कर लिया। मेरा ऐसा एक फैसला लेना..... दूसरे लोगों को गलत लग सकता है। जहां तक मुझे पता है यह सही फैसला है और खुशी का फैसला है।

पुलिस वालों से मेरी एक प्रार्थना है। मेरी मौत का कोई कारण नहीं है। किसी को भी पूछताछ के लिए परेशान करने की जरूरत नहीं। उसी तरह मैंने प्रेम किया वह कौन सी लड़की है यह जानने की भी कोशिश करने की जरूरत नहीं।

अम्मा! अप्पा....! फिर से मुझे माफ कर देना। मैं आपसे और इस दुनिया से हमेशा के लिए जा रहा हूं।

आपका अपना

आपके पुत्र जैसा जीवित रहने न लायक

गोकुल।'

लेटर को कंप्यूटर में टाइप करके खत्म कर..... उसे प्रिंटर में लगा कॉपी ले लिया। फिर कंप्यूटर टाइप किए हुए को डिलीट ऑप्शन में जाकर डिलीट कर दिया।

खिड़की के बाहर पक्षियों की आवाज आई। दीवार घड़ी पर समय देखा।

समय 4:45.

'अब थोड़ी देर में सवेरा हो जाएगा।

अम्मा और अप्पा वाकिंग के लिए निकल जाएंगे। उनके निगाह में नहीं पड़ना चाहिए। रवाना हो जाना चाहिए।'

कमरे से धीरे से बाहर आया। ऊपर के बरामदे, हॉल में अंधेरा था.... सीढ़ियां उतरा। हॉल में चल कर बाहर के दरवाजे के चिटकनी को खोला।

पोर्टिको में खड़ी दो कीमती गाड़ियां चमचमा रहीं थीं। उस अंधेरे में भी वे चमक रही थीं। कार के पास में उसके अपने चेलेंजर बाईक लिया और उसे कंपाउंड के गेट तक धक्का देकर ले गया।

गेट को खोलकर वॉचमैन ने सेल्यूट कियाउस पर ध्यान ना देकर बाइक को स्टार्ट करके रास्ते में वह उड़ा।

सुबह होने के बाद भी थोड़ा अंधेरा था। आने-जाने वाले रास्ते में कोई नहीं था। बाइक एक बिजली के जैसे हवा को चीरते हुए जा रही थी।

समुद्र तट के रास्ते से आधी दूर जाने के बाद सेलफोन बजा। बाइक के रफ्तार को कम करके...  कौन बुला रहा है देखा।

अम्मा!

'बात करें.... नहीं करें ?' 5 सेकंड सोचा.... फिर सेल फोन को कानों में लगाया "हां".. बोला।

दूसरी तरफ से अम्मा गुस्से में बोली।

"क्यों रे... क्या बात है ? कल रात 11:00 बजे फोन करके पूछे तो रात को एक घंटे में आ जाऊंगा तुमने बोला! तुम्हारे पास दूसरी चाबी थी अतः मैंने उस पर विश्वास किया। रात को कितने बजे आए?"

"1:00 बजे...."

"क्यों रे तेरी आवाज अजीब सी है ?"

"कल पार्टी में दो आइसक्रीम खाया। गला खराब हो गया।"

"आइसक्रीम खाया ? नहीं..... आइस बियर पिया? आजकल तेरा कुछ भी ठीक नहीं है.... जब देखो तब पार्टी..... पार्टी...! ठीक है रात को 1:00 बजे आया? अभी कहां रवाना हो गया?"

"वह है ना.... वो... मेरा एक फ्रेंड दिल्ली से आ रहा है। उसी को रिसीव करने एयरपोर्ट जा रहा हूं।"

"क्या है रे ! रात को 1:00 बजे आया थोड़ी देर पहले ही बोला! रात को सोया कि नहीं?"

"4:00 बजे तक सोया.... यह कम है क्या ?"

"तुम बात कर रहे हो उसे... तो तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है लग रहा है.....!"

"वह सब कुछ नहीं है अम्मा....! मैं ठीक हूं......"

"ठीक! तुम एरोड्रम जाकर कब वापस आओगे? 8:00 बजे तक आ जाओगे ना ?"

"देखेंगे।"

मोबाइल को बंद किया।

बाइक ने फिर से वेग पकड़ा।

पूर्व दिशा धीरे-धीरे ऑरेंज रंग में बदल रहा था... उसने बाइक को दौड़ाया। चेन्नई शहर की इमारतें पीछे जा रही थी.... अगले 20 मिनट में ईच्चम पाकम आ गया।

शहर जैसे उत्साह हीन वहां मकान दूर-दूर पर दिखाई दिए।

बाइक अब तार के सड़क को छोड़कर... मिट्टी के सड़क चलने लगी..... ठीक तरह से पूरा बिना बना एक अपार्टमेंट की तरफ गया।

'वामन अपार्टमेंट्स-जाने का रास्ता'-ऐसा रास्ता दिखाने वाला एक तख्ती वहां पर दो टुकड़ों में टूटी पड़ी थी..... बाइक उस तरफ मुड़ी।

एक मिनट तक कूद-कूद कर गई.... बिना पूरे हुए वह 7 मंजिल का अपार्टमेंट बिल्डिंग के सामने जाकर खड़ी हुई।

बाइक को खड़ा किया। उतर कर इधर-उधर देखा।

सब तरफ सुनसान। कोई आदमी नहीं आ रहा।

धीरे से.... बिल्डिंग की तरफ चला। मिट्टी में सो रहे एक कुत्ता उसको देख कर दौड़ा।

सीढ़ियों पर चढ़ते समय सेलफोन लेकर कॉल लगाया।

"पुलिस कंट्रोल रूम ?"

"कौन ?"

"मेरा नाम गोकुलन है। मैं और 5 मिनट में आत्महत्या करने वाला हूं। कारण प्रेम में असफलता... हार। लेटर में सब विस्तार से लिख दिया। पूछताछ के नाम से किसी को परेशान करने की जरूरत नहीं। ठीक से पूरा कंस्ट्रक्शन नहीं हुए एक अपार्टमेंट के सातवीं मंजिल से नीचे कूदकर अपनी जान दे रहा हूं। अभी मैं तीसरी मंजिल में हूं।"

"ये....!"-कंट्रोल रूम में से एक अधिकारी की भारी आवाज में चिल्ला रहे थे.... उसी समय वह सीढ़ियां चढ़ना शुरू कर दिया।

चौथी मंजिल आई।

अपने मोबाइल को बंद कर उसने जेब में रख..... सीढ़ियां चढ़ने लगा।

पांच, छठवीं मंजिल चढ़ते सांस भरने लगी।

सातवीं मंजिल की छत पर पहुंचा। समुद्र की हवा तेजी से चली। समुद्र के पार आकाश में मिलने वाली जगह सूरज लाल कली जैसे सर उठा रहा दिखाई दिया।

वह सातवीं मंजिल के छत के किनारे की तरफ बढ़ने लगा।

अपने आत्महत्या के कागज को निकाल कर अपने शर्ट के जेब मे रखकर सेफ़्टी पिन उसमें लगा दिया ।